आनंद के पापा, अपने एक कॉलेज, दोस्त से मिलने गए। दोनों में, इस बात को लेकर चर्चा हुई- कि हमारा होना या न होना, फैमिली मैंबर्स के लिए कितना मायने रखता है। अगर हम ना रहें, तो हमारे बीवी, बच्चों का क्या होगा। स्ट्रगल, जैसी कई दिक्कतों का, वो कैसे सामना करेंगे। दोस्त से मुलाकात के बाद, जब घर लौटे- तो उसी उलझन में थे। इसलिए, एक संत से मिलने, गांव गए और उनसे, अपनी समस्या का समाधान पूछा। संत ने कहा- तुम्हारे अहंकार का समाधान बहुत आसान है। एक काम करो, 2 साल के लिए, किसी दूसरे शहर में चले जाओ और वो भी अपने परिवार को बिना बताए। वो कहने लगे- अगर मैं, बिना बताए गया, तो मेरे परिवार वाले परेशान हो जाएंगे। संत ने कहा- उसकी फिक्र मत करो, वो सब, मैं संभाल लूंगा।
उन्होंने घर छोड़ दिया। उधर उन महात्मा संत ने, गांव में ये बात फैला दी- कि उनके आश्रम में एक शेर आया, और एक आदमी को उठाकर ले गया। उसकी मौत हो गई। ये बात आनंद के परिवार तक पहुंच गई। उन पर मुसिबतों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन, पड़ोसियों ने उनका साथ दिया। पैसे इकट्ठे करके दिए। धीरे-धीरे उनके घर में सब ठीक हो गया, आनंद और कंचन, दोनों अपनी-अपनी पढ़ाई में बिजी हो गए। उनकी मदर, कहीं जॉब करने लगी। इन 2 साल के अंदर सब कुछ वैसा ही हो गया, जैसा आनंद के पापा के होने पर था। 2 साल बाद, जब वो लौटे- तो उन्होंने देखा कि उनके बच्चे और बीवी खुशी से अपनी जिंदगी जी रहे हैं। उनका परिवार, उस संकट से उभर चुका था। तब उन्हें समझ आ गया कि दुनिया में किसी के रहने -नहीं रहने से, फर्क नहीं पड़ता।